जब एक सूअर की वजह से भिड़ने वाले थे अमेरिका और ब्रिटेन, पढ़िए पूरा किस्सा

सुअर युद्ध विश्व इतिहास में सबसे अजीब और सबसे अस्पष्ट युद्धों में से एक है। यह एक ऐसी घटना थी जिसमें एक सूअर को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन के बीच खूनी युद्ध छिड़ जाएगा। इस पूरे युद्ध की नींव 1846 में रखी गई थी, जब अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के बीच ओरेगन संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि से अमेरिका, ब्रिटेन और उत्तरी अमेरिका (जो बाद में कनाडा बन गया) ने रॉकी पर्वत और प्रशांत महासागर के बीच के विवाद को सुलझाने की कोशिश की।

इस संधि के अनुसार इन देशों के बीच की सीमा को 49 समानांतर रेखाओं से विभाजित किया गया था। यह सीमा आज भी इन देशों की सीमाओं को विभाजित करती है। संधि के तहत, सैन जुआन द्वीप समूह को रोसारियो की जलडमरूमध्य के तहत ग्रेट ब्रिटेन में स्थानांतरित कर दिया गया था, जबकि सैन जुआन द्वीप समूह को हारो जलडमरूमध्य के माध्यम से संयुक्त राज्य में स्थानांतरित कर दिया गया था। कल्पना कीजिए कि एक ही द्वीप दो अलग-अलग देशों में विभाजित था। हालांकि, यह सीमा बाद में सुअर युद्ध का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई।

जब बाद में 1859 में ब्रिटेन के लोगों ने इस सीमा के आसपास बसना शुरू किया, तो ब्रिटेन को ताकत मिली। कुछ दिनों बाद, अमेरिकी भी आए और द्वीप पर बस गए। 1859 में, ब्रिटिश द्वीपों में रहने वाले हडसन कंपनी के मालिक का एक सुअर आलू किसान के आलू के खेत में घुस गया। जब अमेरिकी किसान ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया और उसने सूअर को गोली मार दी। जब मामला बढ़ा, तो हडसन कंपनी के मालिक को दस डॉलर के मुआवजे के लिए अदालत में सूचित किया गया।

मामला कोर्ट में जाने के बाद यूएस जनरल विलियम एस. हार्नी ने कहा कि उन्होंने जुलाई 1859 में सेना भेजी थी। उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भी सेना की तीन यूनिट भेजीं। एक सूअर की मौत ने दोनों देशों के बीच युद्ध का माहौल बना दिया था। हालांकि, ब्रिटिश गवर्नर जेम्स डगलस नहीं चाहते थे कि युद्ध छिड़ जाए, इसलिए ब्रिटिश और अमेरिकी सरकारों ने हस्तक्षेप किया। इस युद्ध के लिए करीब ढाई हजार सैनिक और तीन युद्धपोत तैनात किए गए थे।

ब्रिटिश और अमेरिकी सरकारों ने मामले को बढ़ता हुआ देखा और फैसला किया कि इस द्वीप पर सौ से अधिक लोग नहीं रहेंगे। तब अमेरिकियों ने दक्षिण की ओर और उत्तरी द्वीप पर अंग्रेजों ने अपने शिविर स्थापित किए। इस स्थिति के 13 साल बाद 1972 में अंतर्राष्ट्रीय आयोग ने पूरे द्वीप को अमेरिका को सौंप दिया और सभी विवाद समाप्त हो गए।

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